Friday, December 10, 2010

बूंद


बूंद
बूंद बूंद से बनता सागर बूंद बूंद से नदी |
बूंद बूंद गिरती सरपर, मन मैं क्यूँ आग लगी |
आग लगी प्यार की ऐसे कुछ भी सूच पाए |
मैं जल रहा तिलतिल, वहा सावन बिता जाये ||

बारिश की फुल्जदियाँ फूटी |
सर्द हवा कुछ ऐसे छुटी |
मिट्टी के खुशबू के संग संग यही संदेसा आये |
मैं जल रहा तिलतिल, वहा सावन बिता जाये ||

भीगा सब जो पानी को तरसे |
पंची भागे धूम किस डरसे |
बारिश की बुँदे छपरोपे टप टप डंख बजाये |
मैं जल रहा तिलतिल, वहा सावन बिता जाये ||

धुप छाव की लुक्का छुप्पी |
सूरज लेता बादल मैं डुबकी |
धुप बारिश चले जब संग संग इंद्रधनू दिखलाये |
मैं जल रहा तिलतिल , वहा सावन बिता जाये ||

- विशाल आपटे


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